नई दिल्ली। दिल्ली का आशा किरण होम शेल्टर बच्चों के लिए डेथ चैंबर बन गया है। यहां मानसिक रुप से कमजोर बच्चे रहते हैं जिनमें से एक महिने में 14 बच्चों की मौत हो चुकी है। मतलब एक दिन छोड़कर एक मौत हो रही है। चौंकाने वाली बात ये है कि अभी तक इसका कोई जायजा नहीं लिया गया है। इस शेल्टर होम की अंदर की स्थिति बेहद खराब है। इतना ही नहीं, बच्चों को सिर्फ आधा ही खाना दिया जाता है। आलम ये है कि मानसिक रूप से कमजोर बच्चों के लिए बनाया गया आशा किरण होम अब उनके लिए डेथ चैंबर बन रहा है।आशा किरण में मौत के मामले में दिल्ली की मंत्री आतिशी ने मजिस्ट्रेट जांच के आदेश दिए हैं। दस्तावेज में इस बात का साफ-साफ जिक्र है कि कैसे महीने दर महीने लोगों की मौत हुई। सबसे चौंकाने वाली बात ये कि जुलाई महीने में ही एक महीने के अंदर 14 की मौत हुई है।
उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने इन मौतों को सबसे वंचित लोगों के खिलाफ़ अपराध करार दिया।
विपक्षी दलों भाजपा और कांग्रेस ने सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी की सरकार पर लापरवाही का आरोप लगाया और आश्रय गृह के बाहर विरोध प्रदर्शन भी किया। आतिशी ने मौतों की मजिस्ट्रेट जांच की घोषणा की, जिसके बाद उपराज्यपाल सक्सेना ने मुख्य सचिव नरेश कुमार को आशा किरण में हुई मौतों सहित शहर द्वारा संचालित सभी आश्रय गृहों की स्थिति की व्यापक जांच करने का निर्देश दिया और एक सप्ताह के भीतर रिपोर्ट मांगी। यहां काम करने वाली महिला का कहना है कि जो सुविधा 4 साल पहले यहां बच्चों को दी जाती थी, वो अब नहीं मिलती। पहले बच्चों को दूध, अंडा सब मिलता था, लेकिन अब सब बंद कर दिया गया है और सिर्फ दाल रोटी मिलती है। इतना ही नहीं, करीब दो दर्जन बच्चों को टीबी की बीमारी बताई गई है। इसके पीछे का कारण बच्चों को सही डाइट न मिलना और अधिक संख्या में लोगों को इसमें भर देना है। एसडीएम ऑफिस के सूत्रों के मुताबिक शेल्टर होम की क्षमता लगभग 500 है, लेकिन अंदर लगभग 950 लोग हैं।
ऐसे में सवाल उठता है कि जिस दिल्ली को वर्ल्ड क्लास सिटी के रूप में जाना और पहचाना जाता है, वहां कहीं ना कहीं पूरा इंफ्रास्ट्रक्चर चरमराता नजर आ रहा है। जो जानकारी मिल रही है, उसमें पता चलता है कि बच्चों को ठीक से खाना नहीं दिया जा रहा है। बीमार हो जाते हैं तो इलाज नहीं दिया जाता। ऐसे में एक महीने में 14 मौत हो जाना सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाता है।