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जबलपुर। आज 9 अप्रैल से चैत्र नवरात्र की शुरुवात हो गई है। इस दौरान जबलपुर की बड़ी खेरमाई माता के दर्शन करने के लिए न सिर्फ जबलपुर, बल्कि मध्यप्रदेश और देश के कोने-कोने से भक्त आते हैं। जबलपुर के भान तलैया के पास स्थित बड़ी खेरमाई मंदिर 800 साल पुराना है। खेरमाई माता का पूजन वर्षों से किया जा रहा है। हिंदू नवरात्र पर्व पर मंदिर में विशेष आराधना करने हजारों भक्त पहुंचते हैं। खेरमाई माता मंदिर को पहले खेरो माता के नाम से जाना जाता था, जो ग्राम देवी के रूप में पूजी जाती हैं। बसाहट के अनुसार मंदिरों की स्थापना भी बढ़ती गई।
आज भी जनजातीय समाज हिंदू संस्कृति के एक भाव को समाहित कर मां भगवती की उपासना करते हैं। पूजन पद्धति भले ही अलग हो, लेकिन ऐसे कई मंदिर शहर और आसपास मौजूद हैं, जहां सैकड़ों वर्ष से जनजाति अनवरत पूजन करने पहुंचते हैं।
गोंड राजा ने कराया था निर्माण
बड़ी खेरमाई मंदिर के पुरोहित पंडित रमाकांत शास्त्री जी बताते हैं कि मंदिर का गोंड राजा संग्राम शाह द्वारा कराया गया था। एक बार गोंड राजा संग्राम शाह मुगल सेनाओं से परास्त होकर खेरमाई मां कि शिला के पास बैठकर पूजा कर रहे थे, तभी उनमें नई शक्ति का संचार हुआ। उन्होंने मुगल सेना पर आक्रमण कर परास्त कर दिया और फिर खेरमाई मढिया की स्थापना करवाई।
9 दिन अलग-अलग रूपों में होता है श्रृंगार
मंदिर के पुजारी रमाकांत शास्त्री ने बताया कि मां बड़ी खेरमाई अपने भक्तों पर विशेष कृपा रखती हैं। यही कारण है कि नौ दिनों तक प्रदेश और देश के कई स्थानों से माता के दर्शन के लिए भक्तों की भीड़ लगती है। कहा जाता है कि इस गुप्त नवरात्रि का एक अलग ही महत्व होता है। इसमें मां का 9 दिन 9 अलग-अलग रूपों के हिसाब से विशेष श्रृंगार किया जाता है, जो मां के रूप को और भी दिव्य बनाता है। जो भी भक्त अपनी श्रद्धा से मां का दर्शन करने आते हैं और व्रत करते हैं तो उनकी सारी मनोकामनाएं मां बड़ी खेरमाई पूरी करती है।
सोमनाथ मंदिर की तर्ज पर हुआ निर्माण
मंदिर के पुजारी बताते हैं कि लगभग 5 साल पहले मंदिर के पुराने स्वरूप को तोड़कर फिर से निर्माण कराया गया है। मंदिर का नया स्वरूप गुजरात के सोमनाथ मंदिर की तर्ज पर बनाया गया है। बड़े-बड़े शानदार झूमर लगाए गए हैं। मां बड़ी खेरमाई की मुख्य मूर्ति के चारों ओर मां के 9 दिव्य रूपों की मूर्तियां मंदिर की शोभा पर चार चांद लगाती है। नवरात्र में सुबह 4 बजे मां बड़ी खेरमाई के दर्शन के पट दर्शन के लिए खोल दिए जाते हैं, जो कि रात्रि 12 बजे तक भक्तगणों के लिए खुले रहते हैं।