सुप्रीम कोर्ट की केंद्र से सिफारिश, सजा देने को लेकर समग्र नीति तैयार करे

6 माह में रिपोर्ट पेश की जाए

252

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आरोपित को दोषी करार देने के बाद सजा दिया जाना लॉटरी की तरह नहीं होना चाहिए। दोषी को सजा देने के मामले में अभी व्यापक तौर पर विषमताएं हैं, यह पूरी तरह जज पर निर्भर है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से सिफारिश की है कि वह सजा देने के मामले में एक समग्र नीति तैयार करे। इसके लिए छह महीने में रिपोर्ट पेश की जाए। जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस एसवीएन भाटी की बेंच ने कहा कि जज कभी भी दायरे से बाहर नहीं होना चाहिए। अनुच्छेद-14 और 21 के तहत यह बेहद अहम अधिकार है और यह सभी को मिला हुआ है। शीर्ष अदालत ने कहा कि सजा पर बहस के दौरान सीआरपीसी की धारा-360 के तहत कोर्ट का दायित्व होता है कि वह तमाम तथ्यों पर विचार करे। इस दौरान आरोपित का व्यवहार आदि भी देखा जाता है।

दरअसल बिहार में पॉक्सो का मामला दर्ज हुआ था। ट्रायल कोर्ट ने एक ही दिन में सुनवाई पूरी की। आरोप है कि आरोपित को बचाव का मौका नहीं देकर दो दिनों बाद मामले में फांसी की सजा दी गई। मामला हाई कोर्ट के पास पहुंचा। हाई कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी के अलग-अलग प्रावधान का पालन नहीं हुआ। ट्रायल कोर्ट के फैसले को खारिज कर फिर से ट्रायल का आदेश हुआ। इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने अपील खारिज कर निर्देश दिया कि ट्रायल कोर्ट पॉक्सो के तहत ट्रायल पूरा करे।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कनाडा, न्यूजीलैंड, इस्राइल, ब्रिटेन में समग्र नीति तैयार है। इसके लिए लॉ कमिशन ने भी 2003 में रिपोर्ट पेश की थी। तब लॉ कमिशन ने कहा था कि भारत में सजा देने को लेकर एक समग्र नीति तैयार की जानी चाहिए। अगर सजा को लेकर गाइडलाइंस बनती हैं तब निश्चित तौर पर इसका क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में काफी फायदा होगा। इस फैसले का दूरगामी असर देखने को मिल सकता है।

Leave A Reply

Your email address will not be published.