जम्मू। जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव को लेकर रणनीतियां बनाई जाने लगीं हैं। अनुच्छेद-370 की समाप्ति के बाद होने जा रहे पहले विधानसभा चुनाव में भाजपा रणनीतिक ढंग से मैदान में उतरेगी। पार्टी सभी सीटों पर चुनाव लड़ने के बजाय अपना ध्यान जम्मू क्षेत्र पर केंद्रित करेगी। पार्टी घाटी में खुद कम सीटों पर लड़ेगी और अधिकांश सीटों पर छोटे दलों से तालमेल और निर्दलीयों को समर्थन दे सकती है।
अनुच्छेद-370 की समाप्ति के बाद भाजपा के लिए यहां का चुनाव काफी प्रतिष्ठा का है। आतंकवाद में कमी और बदले माहौल में भाजपा को काफी उम्मीदें है। भाजपा ने हाल में केंद्रीय मंत्री जी. किशन रेड्डी को जम्मू-कश्मीर का चुनाव प्रभारी भी बनाया है। हालांकि, संगठन प्रभारी के तौर पर अधिकांश काम महासचिव तरुण चुग ही देख रहे हैं। हाल के लोकसभा चुनाव में लोगों ने चुनाव के प्रति काफी उत्साह दिखाया है, उससे भी विधानसभा चुनाव काफी रोचक होने की उम्मीद है। लोकसभा चुनाव में भाजपा ने जम्मू क्षेत्र में अपनी ताकत बरकरार रखते हुए जम्मू और उधमपुर की दोनों सीटें फिर से जीत ली हैं। घाटी की तीन सीटों में दो नेशनल कांफ्रेंस को और एक निर्दलीय को मिली है। भाजपा सूत्रों के अनुसार, पार्टी जम्मू क्षेत्र में ज्यादा जोर लगाएगी और वह यहां की अधिकांश सीटों को जीतने की कोशिश करेगी। घाटी में वह एक दर्जन सीटों पर चुनाव लड़ सकती है, जबकि बाकी पर स्थानीय छोटे दलों से तालमेल व कुछ पर निर्दलीय उम्मीदवारों का समर्थन कर सकती है। दरअसल, भाजपा घाटी में अपनी कमजोर स्थिति को देखते हुए वहां पर राष्ट्र की मुख्यधारा के समर्थक नेताओं को आगे लाना चाहती है।
लोकसभा चुनाव में राज्य के दो क्षेत्रीय दलों के बड़े नेता पूर्व मुख्यमंत्री एवं पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती और नेशनल कांफ्रेंस के नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को हार का सामना करना पड़ा। इ
सके अलावा, बारामूला से निर्दलीय अब्दुल रशीद शेख उर्फ इंजीनियर की जीत भी चौंकाने वाली रही। यह राजनीतिक दलों के लिए चिंता का विषय है। इंजीनियर ने जेल में रहकर चुनाव लड़ा और उमर अब्दुल्ला को हराया है। भाजपा ने यहां 2014 के पिछले विधानसभा चुनाव में पीडीपी के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। तब 87 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा को जम्मू क्षेत्र में 25 सीटों पर बड़ी जीत मिली थी जबकि पीडीपी ने घाटी में 28 सीटों पर जीत दर्ज की थी। इस गठबंधन को लेकर भी काफी आश्चर्य हुआ था और वह कुछ समय बाद टूटा भी। 2019 के बाद हालात पूरी तरह बदल गए। जम्मू-कश्मीर का विभाजन हुआ और लद्दाख व जम्मू-कश्मीर दो केंद्र शासित प्रदेश बने। हालांकि, जम्मू-कश्मीर में विधानसभा बरकरार रखी गई। साथ ही इस बीच परिसीमन का काम भी किया गया। इससे भी काफी राजनीतिक बदलाव देखने को मिल सकते हैं।सर्वोच्च अदालत के निर्देश के बाद जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरू हो गई है।
राज्य में इस बार का चुनाव इसलिए भी अहम है कि यह न केवल राज्य में अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद पहला विधानसभा चुनाव है, बल्कि हाल के लोकसभा चुनाव में मतदाताओं की भागीदारी को देखते हुए राज्य में चुनाव को लेकर बेहद उत्साह है। लोक सभा चुनाव के नतीजे भी चौंकाने वाले रहे हैं।