24 घंटे में 50 एमएम बारिश ही झेल सकती है दिल्ली
पीडब्ल्यूडी के मुताबिक, शहर का ड्रेनेज सिस्टम 24 घंटे की अवधि में 50 मिमी बारिश को ही झेल सकता है। इससे अधिक बारिश होने पर जलभराव की समस्या से जूझना होता है। विशेषज्ञ बताते हैं कि 2000 के बाद दिल्ली में तेजी से विकास कार्य हुए हैं। इसमें खाली पड़ी जमीन पर फ्लैटों का निर्माण हुआ। वहीं, हरित क्षेत्र बढ़ाने के नाम पर झाड़ियां ज्यादा लगाई गईं, वृक्ष कम। 2014 में 1731 अनाधिकृत कॉलोनियों की संख्या अब करीब दो हजार तक पहुंच गई है। उधर, सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरनमेंट (सीएसई) के एक अध्ययन के मुताबिक 2003 से 2022 तक निर्मित क्षेत्र 31.4 फीसदी से बढ़कर 38.2 फीसदी हो गए हैं। ऐसे में बढ़ते कंक्रीट के जंगल ने संकट और बढ़ाया है।
दिल्ली में छोटे-बड़े करीब 2846 नाले हैं और इनकी लंबाई करीब 3692 किलोमीटर है। इन नालों का एक बड़ा हिस्सा पीडब्ल्यूडी के पास है। इसमें तीन प्रमुख प्राकृतिक जल निकासी बेसिन में विभाजित किया है। यह बेसिन ट्रांस यमुना, बारापुला और नजफगढ़ है। इसके अलावा कुछ बहुत छोटे जल निकासी बेसिन अरुणा नगर और चंद्रवाल भी हैं, जो सीधे यमुना में गिरते हैं। ऐसे में प्रमुख नाले और ड्रेनेज सिस्टम ठोस कचरे और अवरोधों से भरे हैं। इससे जल निकासी धीमी हो जाती है। जबकि कई नाले और जल निकासी के रास्ते अतिक्रमण की वजह से संकरे या बंद हो गए हैं। आरके पुरम, दरियागंज, करोल बाग में स्थित दरयाई, रानी झांसी रोड, कलबन नाला, बड़ा हिंदू राव, बरापुला नाला शहरीकरण और अतिक्रमण के कारण इनका अस्तित्व ही खत्म हो गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि नालियों पर अतिक्रमण को हटाना जरूरी है। वहीं, इन नालियों में सीवेज व कोई ठोस अपशिष्ट जाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। बरसाती पानी सीवर सिस्टम में नहीं बहाया जाना चाहिए। यही नहीं, नालियों के ऊपर निर्माण को रोकना जरूरी है। नए नालों का डिजाइन अलग से नहीं किया जाना चाहिए।