उज्जैन। उज्जैन महाकालेश्वर मंदिर परिसर में स्थित नागचन्द्रेश्वर मंदिर का विशेष महत्व है। साल में एक दिन सिर्फ नागपंचमी पर खुलने वाले मंदिर के दर्शन के लिए हजारों भक्त पहुंचते हैं। रात 12 बजे गेट खुलते हैं, और 24 घंटे बाद अगली रात 12 बजे बंद होते हैं।
हर साल 2 लाख से ज्यादा श्रद्धालु करते हैं दर्शन
बता दें कि हर साल नागपंचमी के अवसर पर 24 घंटे में 2 लाख से ज्यादा श्रद्धालु इस मंदिर में दर्शन करने पहुंचते हैं। मंदिर प्रबंध समिति के अध्यक्ष नीरज कुमार सिंह ने बताया कि महाकाल मंदिर उज्जैन में नागपंचमी 2024 के अवसर पर महाकाल मंदिर में दर्शन के लिए अलग रूट और नागचंद्रेश्वर मंदिर में दर्शन के लिए अलग रूट निर्धारित किया गया है। त्रिवेणी संग्रहालय से 40 मिनट में महाकाल के दर्शन करवाए जाने की बात भी कही गई है।
नागचंद्रेश्वर मंदिर की पूजा और व्यवस्था महानिवार्णी अखाड़ा के संन्यासियों द्वारा की जाती है। अखाड़े के महंत विनीत गिरि महाराज के अनुसार इस मंदिर की पूजा विधिवत रूप से की जाती है। यहां भगवान विष्णु की जगह भगवान भोलेनाथ सर्प शय्या पर विराजमान हैं। कहा जाता है कि दुनिया में इस तरह की प्रतिमा और कहीं नहीं हैं। महाकाल मंदिर के शिखर में विराजित दुर्लभ प्रतिमा के साथ इसी तल पर पिंडी स्वरूप शिवलिंग भी है, जिसे सिद्धेश्वर कहा जाता है। मंदिर में नागपंचमी के दिन दोनों ही स्वरूप में भगवान शिव की पूजा-अर्चना की जाती है।
श्री नागचंद्रेश्वर के दर्शन करने के लिए श्रद्धालु बड़ी संख्या में मंदिर के बाहर खड़े हुए हैं जिन्हें सिर्फ और सिर्फ रात की 12 बजने का इंतजार है। रात की 12 बजते ही सबसे पहले मंदिर में विशेष पूजन अर्चन किया जाएगा। इसके बाद श्रद्धालु भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन कर पाएंगे। कतार में लगकर अपनी बारी का इंतजार करने वाले श्रद्धालु दूर-दूर से यहां भगवान के दर्शन करने पहुंचे हैं।
विश्व की एक मात्र प्रतिमा
नागचंद्रेश्वर मंदिर की पूजन व्यवस्था परंपरा अनुसार, महानिर्वाणी अखाड़े के अधीन है। अखाड़े के गादीपति महंत विनीत गिरि महाराज बताते हैं मंदिर के अग्रभाग में स्थित भगवान नागचंद्रेश्वर की मूर्ति अत्यंत दुर्लभ है। यह एक मात्र श्री विग्रह है, जिसमें सर्पासन पर भगवान शिव पार्वती, गणेश, कार्तिकेय सहित पूरा शिव परिवार विराजित है। भगवान शिव का वाहन नंदी और माता पार्वती का वाहन सिंह भी दृष्टिगोचर होते हैं। ऊपर सूर्य व चंद्रमा भी अंकित हैं। भगवान शिव के गले में भुजंग लिपटे हुए हैं। इस प्रकार की मूर्ति विश्व में दूसरी देखने को नहीं मिलती है।