नई दिल्ली। सांसदों की सैलरी बढ़ने पर जब सवाल उठने पर मोदी सरकार की तरफ से मामले में सफाई आ गई है। मोदी सरकार ने कहा है कि वेतन वृद्धि महंगाई के कारण हुई है। यह 2018 की नीति के मुताबिक हुई है। इस नीति में सैलरी को महंगाई के साथ जोड़ने का नियम है।
सूत्रों के मुताबिक केंद्र सरकार का कहना है कि 2018 में बनाया गया नियम सही और पूरी तरह पारदर्शी है। इस नियम के कारण मनमाने तरीके से सैलरी नहीं बढ़ सकती और आर्थिक मामलों में सावधानी बरती होती है। दरअसल, वित्त अधिनियम 2018 में सांसदों के वेतन, भत्ते और पेंशन अधिनियम 1954 में बदलाव किया। बदलाव के बाद सांसदों की सैलरी महंगाई के साथ जोड़ दी गई।
साल 2018 में हुई बदलावों के बाद इनकम टैक्स एक्ट, 1961 के तहत प्रकाशित कॉस्ट इन्फ्लेशन इंडेक्स (सीआईआई) का इस्तेमाल होता है। सूत्रों के मुताबिक इस बदलाव से पहले, वेतन वृद्धि अचानक होती थी। हर बार संसद से मंजूरी लेनी पड़ती थी। तब बदलाव के पीछे प्रक्रिया को गैर राजनीतिक बनाने और वेतन समायोजन के लिए तंत्र बनाने का तर्क दिया गया था। साल 2018 से पहले आखिरी बार सैलरी में बदलाव 2010 में हुआ था। तब संसद ने सांसदों का मासिक वेतन 16 हजार से बढ़ाकर 50 हजार रुपये करने का बिल पास किया था। इस फैसले की लोगों ने बहुत आलोचना की थी। तब लोगों ने कहा था कि सांसद खुद को 3 गुना वेतन दे रहे हैं।
हालांकि, कुछ नेताओं ने सैलरी 5 गुना तक बढ़ाने की मांग की थी। इसमें मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद यादव शामिल थे। मुलायम और लालू सहित कई नेताओं का कहना था कि महंगाई बहुत बढ़ गई है इसलिए वेतन भी बढ़ना चाहिए। अब सरकार का मानना है कि 2018 में जो नियम बनाया गया है, वह सबसे अच्छा है। इससे सैलरी में बढ़ोतरी अपने आप हो जाती है।
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