हाईकोर्ट ने लगाई आदमखोर बाघ को मारने पर रोक
हिंसक जीव खात्मे के लिए जनआंदोलन की बजाय चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन की संस्तुति जरूरी
नैनीताल। नैनीताल हाईकोर्ट ने भीमताल के आदमखोर बाघ मामले पर संज्ञान लेते हुए वन्यजीव हत्या पर रोक लगा दी है। न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा और न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की खंडपीठ ने वन विभाग से कहा कि हमलावर या हिंसक जानवर की पहचान करने के लिए कैमरे और पकड़ने के लिए पिजरें लगाएं। अगर पकड़ में नहीं आता है तो उसे ट्रेंकुलाइज कर रेस्क्यू सेंटर भेजें।
गौरतलब है कि भीमताल में 3 दिनों में 2 महिलाओं को शिकार बनाने से आक्रोशित ग्रामीणों द्वारा बाघ को आदमखोर घोषित कर उसे मारने की मांग पर वनमंत्री सुबोध उनियाल ने बाघ को आदमखोर घोषित कर कार्यवाही स्वरुप घटनास्थल पर 36 कैमरे और आसपास 5 पिंजरे लगाए थे ।
कोर्ट ने सख्त लहजे में कहा कि अभी तक यह पता नहीं है कि वो बाघ है या गुलदार। फिर कैसे मारने के आदेश दे दिए। कोर्ट ने वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन की धारा 11ए में उसे मारने के आदेश पर स्थिति स्पष्ट करने को कहा है।अब इस मामले की सुनवाई 21 दिसंबर को होगी। गुरुवार को नैनीताल हाईकोर्ट में इस मामले में सुनवाई हुई, जिसमें सरकार की तरफ से मुख्य स्थायी अधिवक्ता चंद्रशेखर रावत, चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन धनंजय और डीएफओ चंद्रशेखर जोशी पेश हुए। मामले में खंडपीठ ने वन अधिकारियों से गुलदार को मारने की अनुमति देने के प्रावधान के बारे में जानकारी मांगी तो वह ठीक से इसका जवाब नहीं दे सके। उनका कहना था कि वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट की धारा 13ए में हमलावर और खूंखार जानवर को मारने की अनुमति दी जाती है।
वन अधिकारियों ने आदमखोर को पकड़ने के लिए 5 पिजड़े व 36 कैमरे लगा रखे हैं।हाईकोर्ट ने कहा कि गुलदार हो या बाघ, उसे मारने के बजाए रेस्क्यू सेंटर भेजा जाना चाहिए। हिंसक जानवर को मारने के लिए चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन की संस्तुति जरूरी है, न कि किसी नेता के आंदोलन की। वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट की धारा 11 ए के तहत तीन परिस्थितियों में किसी जानवर को मार सकते हैं। उसे पहले संबंधित क्षेत्र से खदेड़ दिया जाता है, फिर ट्रेंक्यूलाइज कर रेस्क्यू सेंटर में रखा जाता है। आखिर में मारने जैसा अंतिम और कठोर कदम उठाया जा सकता है।