Chhattisgarh: 730 दिन में नक्सलियों को खत्म करने का प्लान ‘हंटर’, CRPF की 40 कंपनी छत्तीसगढ़ रवाना

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छत्तीसगढ़। झारखंड और बिहार के नक्सल प्रभावित इलाकों में सुरक्षा बलों के कैंप स्थापित होने के बाद अब अगला नंबर छत्तीसगढ़ का है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का प्लान है कि अगले 730 दिन में नक्सलवाद पूरी तरह से खत्म हो जाए। शाह के प्लान पर सुरक्षा बलों ने काम शुरू कर दिया है। छत्तीसगढ़ में सीआरपीएफ की लगभग 40 कंपनियां पहुंच रही हैं। इस बड़े ऑपरेशन के बाद छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के गढ़ कहे जाने वाले हर इलाके तक सुरक्षा बलों की पहुंच होगी। पिछले दिनों में सुकमा के ऐसे इलाके, जिनकी पहचान नक्सलियों के बटालियन मुख्यालय के तौर पर होती रही है, वहां पर सीआरपीएफ और स्थानीय पुलिस ने कैंप स्थापित कर लिया है। सीआरपीएफ और स्थानीय पुलिस ने नया कैंप सुकमा बीजापुर जिले की सीमा पर दुलेड़ व मेटागुड़ा के बीच में स्थापित किया गया है। इस साल नक्सल प्रभावित इलाकों में करीब 44 नए सिक्योरिटी कैंप स्थापित होंगे।

केंद्रीय गृह मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, गृह मंत्री अमित शाह यह बात कह चुके हैं कि दो साल के भीतर देश का ऐसा कोई भी हिस्सा बचा न रहे, जहां पर नक्सलियों का प्रभाव हो। ऐसे इलाकों तक सुरक्षा बलों की पहुंच न हो। यही वजह है कि इस साल नक्सलियों के खिलाफ निर्णायक लड़ाई प्रारंभ होने जा रही है। छत्तीसगढ़ को छोड़कर देश के बाकी हिस्सों में नक्सली घटनाओं पर काफी हद तक काबू पा लिया गया है। झारखंड में गत वर्ष ही सुरक्षा बलों ने हर उस इलाके तक अपनी पहुंच बना ली थी, जिन्हें नक्सलियों का गढ़ माना जाता था। कई इलाकों से नक्सलियों को खदेड़ कर सुरक्षा बलों ने अपने स्थायी कैंप स्थापित कर लिए थे। जहां पर भी सुरक्षा बलों का कैंप स्थापित होता है, उस इलाके में विकास के कार्य भी तुरंत रफ्तार पकड़ लेते हैं। ग्रामीणों के जीवन स्तर में सुधार आने लगता है।

हाल ही में दुलेड़ व मेटागुड़ा के बीच में सीआरपीएफ ने जो कैंप स्थापित किया है, वह इलाका नक्सलियों के बटालियन मुख्यालय के तौर पर जाना जाता था। इस क्षेत्र में बहुत ही छोटे अंतराल के दौरान यह दूसरा कैंप स्थापित किया गया है। छत्तीसगढ़ पुलिस के एसपी रवि किरण और सीआरपीएफ डीआईजी अरविंद राय ने खुद इस कैंप का दौरा किया था। सूत्रों के मुताबिक, केंद्रीय गृह मंत्री द्वारा तय की गई समय सीमा के दायरे में ही नक्सलियों को खदेड़ दिया जाएगा। सुरक्षा बलों की रणनीति के मुताबिक, नक्सलियों को अपने प्रभाव वाला क्षेत्र छोड़कर सरेंडर करना पड़ेगा। अगर वे जंगल में और ज्यादा गहराई की तरफ जाते हैं तो उस स्थिति में उनका बचना नाममुकिन है। वजह, उनकी सप्लाई चेन पूरी तरह से कट जाएगी।

देर सवेर, सुरक्षा बलों की टीम का वहां तक पहुंचना तय है। ऐसे में उनके पास, सरेंडर करने के अलावा दूसरा विकल्प नहीं है। चार दशकों में ऐसा पहली बार हुआ है जब नक्सली घटनाओं में सुरक्षा कर्मियों और सामान्य नागरिकों की मौत का आंकड़ा सौ से कम रहा है। मौजूदा समय में सुरक्षा बलों ने जिस रणनीति पर काम शुरू किया है, उसके अंतर्गत दो वर्ष में नक्सलवाद को पूरी तरह से खत्म कर दिया जाएगा। साल 2019 के बाद नक्सलियों के प्रभाव वाले इलाकों में सुरक्षा बलों ने जो सेंध लगाई है, उससे नक्सलियों को वह क्षेत्र छोड़कर भागना पड़ा है।

सुरक्षा बलों ने अपने घेरे को मजबूत करते हुए नक्सल प्रभावित इलाकों में 195 नए कैंप स्थापित किए हैं। इस साल 44 नए कैंप स्थापित करने का लक्ष्य है। नक्सलियों से जुड़ी हिंसा में 52 फीसदी की गिरावट देखी गई है। मौत के मामलों में 69 फीसदी की कमी आई है, तो वहीं सुरक्षा बलों को होने वाली जान की हानि के मामलों में 72 फीसदी की कमी दर्ज हुई है। ऐसी घटनाओं में सामान्य लोगों के मारे जाने की संख्या में भी 68 फीसदी की कमी आई है।

गत वर्ष नक्सलियों के गढ़ कहे जाने वाले इलाके जैसे बिहार में बरमासिया, चक्राबंदा और झारखंड में बूढ़ा पहाड़ व पारसनाथ आदि क्षेत्रों में सुरक्षा बलों के कैंप स्थापित हो चुके हैं। 2023 में 33 नए कैंप स्थापित किए गए हैं। सीएपीएफ, स्टेट पुलिस और विशेष पुलिस बल की 11 ज्वाइंट टॉस्क फोर्स टीमें बनाई गई हैं। इस साल तीन नई ज्वाइंट टॉस्क फोर्स गठित की जाएंगी।

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