मोदी की गारंटी और राम लहर के भरोसे छिंदवाड़ा के रण में भाजपा

पार्टी को इस बार मप्र में क्लीन स्वीप की उम्मीद

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भोपाल। मप्र में 29 सीटों पर चुनावी घमासान चरम पर है। भाजपा का सबसे अधिक अधिक फोकस छिंदवाड़ा सीट पर है। भाजपा की आस मोदी की गारंटी और राम लहर पर है, क्योंकि विकास का मुद्दा यहां अन्य क्षेत्रों के मुकाबले फीका पड़ जाता है। इसलिए भाजपा ने छिंदवाड़ा में चुनाव प्रचार की रणनीति बदली है। शहर हो या गांव, हर जगह भगवा झंडे देखने को मिल रहे हैं तो प्रचार रथों के माध्यम से ‘जो राम को लाए हैं, हम उनको लाएंगे’ गीत के माध्यम से संदेश देने का काम किया जा रहा है। भाजपा ने कमल नाथ के परिवारवाद को भी चुनावी मुद्दा बनाया हुआ है। गौरतलब है कि पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ के इस गढ़ को भेदने के प्रयास में भाजपा वर्षों से जुटी है। कांग्रेस से दलबदल तो पूरे प्रदेश में हुआ है, पर यहां कमल नाथ के ऐसे समर्थकों ने उनका साथ चुनाव के मौके पर छोड़ दिया, जो उनकी ताकत थे और छिंदवाड़ा जिले में कांग्रेस के मजबूत स्तंभ। राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी कमल नाथ ने भाजपा की इस सेंधमारी को सहानुभूति कार्ड के रूप में खेल दिया है तो भाजपा भी पीछे रहने वाली नहीं है। कांग्रेस प्रत्याशी नकुल नाथ द्वारा आदिवासी विधायक कमलेश शाह को गद्दार बोला गया तो भाजपा ने इसे आदिवासी अपमान का मुद्दा बना दिया है। वहीं, शहरी क्षेत्रों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की गारंटी और रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा को भुनाने का प्रयास किया जा रहा है। भाजपा ने विवेक बंटी साहू को प्रत्याशी बनाया है, जो कमल नाथ से दो बार विस चुनाव हार चुके हैं। साहू को जिताने के लिए भाजपा ने पूरी ताकत झोंक दी है।

नाथ की साख दांव पर
छिंदवाड़ा से कांग्रेस के प्रत्याशी भले ही नकुल नाथ हों, पर चुनाव मैदान में उनके पिता कमल नाथ ही लड़ रहे हैं। प्रतिष्ठा भी उन्हीं की दांव पर है और भाजपा के निशाने पर भी वही हैं। इसकी असली वजह यह है कि छिंदवाड़ा में पूरी मैदानी जमावट कमल नाथ की ही है। आदिवासी क्षेत्र जुन्नारदेव, पांढुर्णा हो या फिर अमरवाड़ा, हर कोई कांग्रेस के नाम पर केवल कमल नाथ को जानता है। यही उनकी ताकत भी है, इसलिए भाजपा द्वारा कांग्रेस नेताओं को पार्टी में शामिल कराने का वैसा माहौल देखने को नहीं मिलता है, जिसकी संभवत: भाजपा नेताओं को उम्मीद थी। छिंदवाड़ा में कांग्रेस की मजबूती का मुख्य आधार आदिवासी हैं। इसे ही ध्यान में रखते हुए अमरवाड़ा से कांग्रेस विधायक कमलेश शाह को भाजपा की सदस्यता दिलाई गई। पांढुर्णा और जुन्नारदेव में कई कांग्रेसियों ने पाला बदला। पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ यह अच्छी तरह से जानते हैं कि भाजपा के लिए छिंदवाड़ा की सीट महत्वपूर्ण है, इसलिए वह लोगों से भावनात्मक रूप से जुड़ रहे हैं। हर सभा में दोहराते हैं कि आप से मेरा संबंध 44 वर्ष पुराना है। आखिरी दम तक साथ निभाऊंगा, आप भी निभाना। इस दौरान वह बिना नाम लिए उन को कटघरे में खड़ा कर रहे, जो साथ छोडक़र चले गए।

भाजपा का जोर आदिवासी क्षेत्रों में
भाजपा का जोर भी आदिवासी क्षेत्रों में है। मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव, पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के यहां दौरे हो चुके हैं। आदिवासी अपमान को मुद्दा बनाकर घेराबंदी की जा रही है तो कमल नाथ के लिए अपनी छिंदवाड़ा विस सीट छोडऩे वाले पूर्व मंत्री दीपक सक्सेना का साथ छोडऩा अवश्य बड़ा झटका है। छिंदवाड़ा के ग्रामीण क्षेत्रों में सक्सेना का प्रभाव है। उन्हें भी अन्य नेताओं की तरह कमल नाथ नहीं, नकुल नाथ के व्यवहार से आपत्ति है। नकुल नाथ उन नेताओं से सामंजस्य नहीं बैठा पाए, जो असल में कमल नाथ की ताकत थे। भाजपा ने इसे ही अवसर बनाया और कांग्रेस के सामने चुनौती खड़ी कर दी है।

 

 

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