नोएडा। उत्तर प्रदेश के नोएडा में एक मुआवज वितरण में कथित घोटाला हुआ है। मामले की जांच चल रही है और अफसरों से इसकी राशि वसूलने की मांग भी उठ रही है। ये घोटाले की खास बात ये है कि कई अधिकारियों ने किसानों के प्रति बेहद उदारता दिखाते हुए मुआवजा बांटा है। वर्ष 2015-16 में इस दौरान प्राधिकरण के एलएआर के अधिकारियों ने उन किसानों को मुआवजा दे दिया, जिनके पक्ष में किसी भी न्यायालय ने कोई आदेश नहीं दिया था। इस मामले में 20 से अधिक अफसरों की भूमिका को लेकर एसआईटी की जांच जारी है। नोएडा के गेझा गांव से शुरू हुई मुआवजा वितरण घोटाले की जांच सात और गांवों तक पहुंच सकती है। भाजपा महानगर अध्यक्ष मनोज गुप्ता ने मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष को पत्र लिखकर दावा किया है कि सात से अधिक गांवों में एक हजार करोड़ से अधिक का मुआवजा वितरण घोटाला हुआ। इसकी उच्चस्तरीय जांच के साथ ही जिम्मेदार अधिकारियों से रकम की वसूली जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी के बाद मुआवजा वितरण घोटाले की जांच के लिए एसआईटी का गठन किया गया। एसआईटी के अध्यक्ष हेमंत राव, सदस्य मंडलायुक्त मेरठ सेल्वा कुमारी जे और एडीजी राजीव सभरवाल ने तीन दिनों तक जिले में डेरा डालकर इस घोटाले की जांच की। उनकी टीम में शामिल सदस्य अब भी घोटाले से संबंधित फाइलों को खंगाल रहे हैं। एसआईटी फिलहाल वर्ष 2009-10 से से बांटे गए मुआवजे से जुड़ी फाइलों की जांच कर रही है।
इसमें भी खास तौर से एलएआर से संबंधित उन 1500 फाइलों की जांच हो रही है, जिनको न्यायालय के आदेश का सहारा लेकर प्राधिकरण की तरफ से मुआवजा बांटा गया। भाजपा के महानगर अध्यक्ष मनोज गुप्ता की ओर से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी को भेजे गए पत्र में कहा गया है कि मुआवजा बांटने में सिर्फ गेझा गांव में ही नहीं बल्कि सात से अधिक गांवों में गड़बड़ी की गई। इसके लिए मुख्य रूप से प्राधिकरण के उच्चाधिकारी जिम्मेदार हैं। उनसे ही घोटाले की रकम की रिकवरी की जाए। उन्होंने पत्र में उच्चस्तरीय जांच की भी मांग की है। महानगर अध्यक्ष का दावा है कि यह घोटाला एक हजार करोड़ से भी अधिक का है। इस मामले में एक गोपनीय पत्र पहले भी शासन को भेजा गया है, जिसमें भाजपा के तीन नेताओं समेत प्राधिकरण के भी कुछ वरिष्ठ अधिकारियों के नाम थे। पत्र में आरोप लगाए गए थे कि बढ़े हुए मुआवजे में से 60 प्रतिशत किसानों को मिला था, जबकि 40 प्रतिशत की बंदरबांट उक्त अधिकारियों और नेताओं के बीच हुई थी। कुछ किसानों के शपथपत्र भी इस गोपनीय पत्र के साथ लगाए गए थे। इस माममले शासन स्तर से प्राधिकरण के विधि परामर्शदाता दिनेश कुमार सिंह को निलंबित किया गया है। गेझा से जुड़े मामले में ढाई साल से तत्कालीन सहायक विधि अधिकारी वीरेंद्र सिंह निलंबित चल रहे हैं। प्राधिकरण की ओर से फेज-1 थाने में केस दर्ज कराया गया था। इस प्रकरण में हाईकोर्ट की पीठ की राय थी कि किसी स्वतंत्र एजेंसी से मामले की जांच कराई जानी चाहिए, लेकिन राज्य सरकार ने जांच नहीं करवाई। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने शासन से जवाब मांगा था। सख्ती के बाद शासन ने इस मामले में जांच कमेटी का गठन किया था।
प्राधिकरण ने पांच फरवरी 1982 और आठ अगस्त 1988 में किसानों की जमीन अधिग्रहित की। इन किसानों के लिए 10.12 से लेकर 31 रुपये प्रति वर्ग गज मुआवजा राशि तय की गई, लेकिन किसानों ने न्यायालय में याचिका दायर की। फैसला उनके पक्ष में हुआ। इसके बाद वर्ष 2015 में 297 रुपये प्रति वर्ग गज की दर से मुआवजा पाने के लिए किसानों ने सीईओ के नाम समझौता प्रार्थना पत्र दिया। वर्ष 2015-16 में किसानों को यह अतिरिक्त मुआवजा दिया गया, लेकिन यह मुआवजा उन किसानों को भी दे दिया गया, जिनके द्वारा कोर्ट में कोई केस नहीं किया गया था।