कांग्रेस ने बदली रणनीति, अब सवर्णों के बजाय ओबीसी, दलित और मुस्लिम पर नजर

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पटना। कांग्रेस ने गुजरात में आयोजित अधिवेशन से साफ संकेत दे दिया है कि वह अब राजनीतिक पुनर्गठन की दिशा में बड़े बदलाव करने जा रही है। छह दशकों बाद बदली रणनीति के तहत पार्टी अब सवर्णों के बजाय ओबीसी, दलित और मुस्लिम समाज पर दांव लगाना चाहती है। इसका सीधा असर बिहार में लालू यादव की आरजेडी और यूपी में अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी पर पड़ सकता है, क्योंकि इन समाजों का पारंपरिक समर्थन इन क्षेत्रीय दलों के साथ रहा है।
कांग्रेस का मानना है कि बीजेपी ने सवर्णों के साथ स्थायी गठजोड़ बना लिया है, ऐसे में पार्टी के लिए बहुजन वर्ग का समर्थन हासिल करना ज्यादा लाभकारी होगा। कांग्रेस ने घोषणा की है कि सत्ता में आने पर वह जातीय जनगणना कराएगी और अनुसूचित जाति-जनजाति के लिए आबादी के अनुपात में बजटीय आवंटन तय करने के लिए केंद्रीय कानून बनाएगी।
विश्लेषकों की माने तो कांग्रेस की यह रणनीति अभी भी कई विरोधाभासों से घिरी है। एक तरफ पार्टी ओबीसी और दलित समाज को साधने की बात कर रही है तो दूसरी ओर उसे उन्हीं वर्गों के वोट बैंक पर कब्जा जमाए क्षेत्रीय दलों से चुनौती का सामना करना पड़ेगा। बिहार में आरजेडी और यूपी में सपा की ओबीसी विशेषकर यादव समाज पर मजबूत पकड़ है, जिसे तोड़ पाना कांग्रेस के लिए मुश्किल होगा। कांग्रेस कभी मुस्लिम, दलित और ब्राह्मणों की पसंदीदा पार्टी हुआ करती थी, लेकिन समय के साथ उसने इन समाजों का भरोसा खो दिया।
आज वही समुदाय क्षेत्रीय दलों की छांव में सियासी सुरक्षा महसूस करते हैं। कांग्रेस की पिछली गलतियों जैसे मुस्लिम नेताओं की उपेक्षा और दंगों पर चुप्पी ने उसकी छवि को नुकसान पहुंचाया है। कुल मिलाकर कांग्रेस की नई रणनीति में आत्मनिर्भरता की झलक तो दिखती है, लेकिन वर्तमान सामाजिक और राजनीतिक समीकरणों को देखते हुए, यह राह बेहद कठिन और समयसाध्य होगी। कांग्रेस को न सिर्फ जनता का विश्वास जीतना होगा, बल्कि क्षेत्रीय दलों के साथ प्रतिस्पर्धा में भी खुद को साबित करना होगा।

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