चुनाव में भाजपा को चुनौती देने वालों की तलाश कर रही कांग्रेस

पटवारी को नए चेहरों की खोज

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भोपाल। प्रदेश कांग्रेस को एक सैकड़ा ऐसे चेहरों की तलाश है जो, विधानसभा चुनाव में भाजपा को चुनौती देने का माद्दा रखते हों। इसके लिए कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष जीतू पटवारी से लेकर नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंगार तक कवायद कर रहे हैं। दरअसल, प्रदेश में कई विधानसभा सीटें ऐसी हैं जिन पर कांग्रेस प्रत्याशी बीते कुछ चुनावों से मुकाबले में ही नहीं रहते हैं। यही वजह है कि कांग्रेस ऐसी सीटों को चिन्हित कर उन पर अभी से फोकस कर रही है। जिससे की साढ़े तीन साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस भाजपा के सामने मजबूत चुनौती पेश कर अच्छा प्रदर्शन कर सके। यही वजह है कि अब संगठन को मजबूत खड़ा करने से लेकर अभी से संभावित प्रत्याशियों की गुपचुप तरीके से तलाश शुरु कर दी गई है।
संगठन को मजबूत करने के लिए ही पार्टी ने भाजपा की तर्ज पर पीढ़ी परिवर्तन पर काम शुरु किया है। इसकेे लिए केन्द्र स्तर पर पहल शुरु की जा चुकी है। यही वजह है कि प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी, नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार, जयवर्धन सिंह और आदिवासी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. विक्रांत भूरिया को बड़ी जिम्मेदारी देकर उन्हें आगे लाया जा रहा है। हालांकि इसी तरह की कवायद करीब पांच साल पहले तत्कालीन प्रदेश प्रभारी दीपक बाबरिया ने संगठन को खड़ा करने के लिए किया था। जिसका फायदा पार्टी को उसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में मिला था औश्र पार्टी की सत्तर में वापसी का दरवाजा खुल गया था। यह बात अलग है कि कांग्रेस में विद्रोह हुआ और पार्टी को एक बार फिर से विपक्ष में बैठना पड़ गया था। कांग्रेस द्वारा लगातार खराब प्रदर्शन को लेकर जो प्रदेश में अध्ययन कराया गया है, उससे पता चला है कि प्रदेश में ऐसे एक सैकड़ा विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं, जहां पार्टी के पास सर्व सहमति के प्रत्याशी नहीं है।

चुनाव लडऩे लायक नए चेहरों को तलाश
चुनाव से पहले पार्टी ऐसे क्षेत्रों में चुनाव लडऩे लायक नए चेहरों को तलाश कर उन्हें चुनाव में उतरने की तैयारी करवाएगी। इसमें भी युवा वर्ग को प्राथमिकता दी जाएगी। प्रदेश में लगभग चार से पांच दशकों से कांग्रेस की जो पीढ़ी सक्रिय थी, उसमें से अब महज दिग्विजय और कमलनाथ ही बचे हैं। संयुक्त मध्य प्रदेश के दौरान सक्रिय रहे श्यामाचरण शुक्ल, विद्याचरण शुक्ल, मोतीलाल वोरा से लेकर अर्जुन सिंह और माधवराव सिंधिया जैसे नेता अब दुनिया में नहीं हैं। यह बात अलग है कि इन नेताओं के जमाने में पार्टी ने कभी दूसरे लाइन के नेताओं को आगे लाने का प्रयास ही नहीं किया है, जिसकी वजह से कांग्रेस को अब प्रभावशाली नेताओं और मतदाताओं पर पकड़ रखने वाले चेहरों के लिए जद्दोजहद करनी पड़ रही है। इसकी वजह है नई पीढ़ी कांग्रेस से दूर होती चली गई। अब कांग्रेस नेतृत्व को अपनी गलती का अहसास हुआ तो पार्टी ऊपर से नीचे तक परिवर्तन कर रही है। मध्य प्रदेश कांग्रेस के संगठन में दशकों बाद बड़ा बदलाव होने जा रहा है। इसमें पंचायत से लेकर प्रदेश स्तर तक युवा चेहरे दिखाई देंगे। पार्टी ने पीढ़ी परिवर्तन का संदेश तो जीतू पटवारी को प्रदेश अध्यक्ष, उमंग सिंघार को विधानसभा का नेता प्रतिपक्ष और हेमंत कटारे को उप नेता बनाकर दे दिया पर अब इसका विस्तार प्राथमिक इकाई तक अभी नहीं हो पाया है। कांग्रेस ने इसी कवायद को लेकर जब प्रदेश की जमीनी स्थिति का अध्ययन कराया तो हकीकत सामने आ गई। इसमें पाया गया है कि पार्टी के पास अब एक सैकड़ा सीटों पर मजबूत प्रत्याशियों तक का अभाव पैदा हो चुका है। पार्टी के विधानसभा प्रत्याशियों को 2023 में मिले वोट भी यह बात साबित करते हैं। वर्ष 2018 में 114 विधानसभा सीटें जीतने वाली कांग्रेस 2023 में 66 सीटों पर ही सिमट गई। इसके ठीक बाद 2024 में लोकसभा चुनाव हुए तो इसमें भी कांग्रेस एकमात्र छिंदवाड़ा सीट भी गंवा बैठी। यही वजह है कि अब कांग्रेस नए सिरे से खड़ी हो रही है।

तलाशे जा चुके हैं आदिवासी चेहरे
मध्य प्रदेश में कांग्रेस पार्टी को मजबूत करने के लिए तरह-तरह के प्रयोग किए जा रहे हैं। पीसीसी चीफ जीतू पटवारी हर वर्ग के लोगों को दोबारा कांग्रेस से जोडऩे का प्रयास कर रहे हैं। अब उन्होंने कांग्रेस के कोर वोटरों को अपनी पार्टी से दोबारा जोडऩा चाहते हैं। इसके लिए आदिवासी लीडरशिप विकसित की जा रही है। यही वजह है कि एआईसीसी और एमपी कांग्रेस के ट्राइबल डिपार्टमेंट के पदाधिकारियों ने इंटरव्यू लेकर न केवल 120 आदिवासी युवाओं को चयनित किया , बल्कि उन्हें सात दिनों का प्रशिक्षण भी दिया है। इसमें अहम बात यह है कि इनका चयन भी अलग -अलग इलाकों से किया गया है।

 

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