निर्वाचन क्षेत्र की सीमाएं दोबारा निर्धारित करने की प्रक्रिया है परिसीमन

भारत में इसकी शुरुआत 1951 की पहली जनगणना से शुरू हुई थी

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नई दिल्ली। दक्षिण भारत के अधिकतर राज्य संसदीय सीटों के लिए प्रस्तावित परिसीमन का विरोध कर रहे हैं। परिसीमन के तहत लोकसभा सीटों की संख्या बढ़ाई जानी है क्योंकि देश की जनसंख्या बढ़ने से एक सांसद जितने लोगों को रिप्रजेंट कर सकता है उससे कहीं ज्यादा लोगों का प्रतिनिधित्व कर रहा है। परिसीमन कर जनसंख्या के आधार पर लोकसभा और राज्य विधानसभा में निर्वाचन क्षेत्र की सीमाओं का फिर से निर्धारण किया जाएगा। तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन ने इस पर कड़ा विरोध जताया है। निर्वाचन क्षेत्र की सीमाएं दोबारा निर्धारित करने की प्रक्रिया को परिसीमन कहलाती है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि लोकतंत्र में आबादी का सही प्रतिनिधित्व हो सके और सभी को समान अवसर मिल सकें। इसलिए लोकसभा या विधानसभा सीटों के क्षेत्र को दोबारा से परिभाषित या उनका पुनर्निधारण किया जाता है। चुनावी प्रक्रिया को ज्यादा लोकतांत्रिक बनाने के लिए परिसीमन जरूरी है। हर राज्य में समय के साथ जनसंख्या में बदलाव होते हैं, ऐसे में बढ़ती जनसंख्या के बाद भी सभी का समान प्रतिनिधित्व हो सके, इसलिए निर्वाचन क्षेत्र का पुनर्निधारण होता है। बढ़ती जनसंख्या के मुताबिक निर्वाचन क्षेत्रों का सही तरीके से विभाजन हो सके, ये भी परिसीमन प्रक्रिया का अहम हिस्सा है। इसका उद्देश्य भी यही है कि हर वर्ग के नागरिक को प्रतिनिधित्व का समान अवसर मिले।

चुनाव के दौरान आरक्षित सीटों की बात कई बार की जाती है। जब भी परिसीमन किया जाता है, तब अनुसूचित वर्ग के हितों को ध्यान में रखने के लिए आरक्षित सीटों का भी निर्धारण करना होता है। संविधान में प्रावधान किया गया है कि हर परिसीमन के लिए जनगणना के बाद नए आंकड़ों का इस्तेमाल किया जाएगा। भारत में परिसीमन की यह परंपरा 1951 की पहली जनगणना से शुरू हुई, जब संविधान के तहत पहली बार परिसीमन आयोग गठित किया गया था। परिसीमन का मुख्य उद्देश्य लोकसभा और विधानसभाओं में जनसंख्या के आधार पर संतुलित प्रतिनिधित्व तय करना है। यह प्रक्रिया भारत में आजादी के बाद से ही लागू है। भारत में परिसीमन की परंपरा की नींव संविधान सभा द्वारा रखी गई। जब भारत 1950 में गणराज्य बना, तब संविधान निर्माताओं ने तय किया कि लोकसभा और विधानसभा सीटों का निर्धारण जनसंख्या के मुताबिक किया जाएगा। इसको संविधान के अनुच्छेद 82 और अनुच्छेद 170 में शामिल किया गया। इसके लिए एक विशेष निकाय परिसीमन आयोग गठित करने का भी प्रावधान किया गया है। भारत में पहला परिसीमन 1952 में किया गया, जो 1951 की जनगणना के आधार पर था। उस समय संसदीय और विधानसभा सीटों का निर्धारण इसी प्रक्रिया से हुआ।

पहले आम चुनाव के समय लोकसभा सीटों की संख्या 489 थी। 1971 की जनगणना के आधार पर 1976 में परिसीमन हुआ था, जिसके बाद सीटों की संख्या बढ़कर 543 हो गई। अब तक चार परिसीमन आयोग गठित किए जा चुके हैं।

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