सूर्य की रोशनी की मात्रा में कमी कर के निपट सकते है ग्लोबल वार्मिंग से
कारगर उपायों पर सामूहिक सहमति बनाने के चल रहे हैं प्रयास
नई दिल्ली। ग्लोबल वार्मिंग पर कंट्रोल करने के लिए वैज्ञानिक कई ठोस उपायों की पैरवी भी कर रहे हैं जिनमें से कुछ अजीब और मुश्किल लगते हैं। ऐसा ही एक उपाय है पृथ्वी पर पहुंचने वाली सूर्य की रोशनी की मात्रा में कमी करना। मालूम हो कि दुबई में सीओपी 28 में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कारगर उपायों को लागू करने के प्रयासों पर सामूहिक सहमति बनाने के प्रयास चल रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ इस बात के संकेत ज्यादा मिल रहे हैं कि हम अब तक निर्धारित किए गए ग्लोबल वार्मिंग के लक्ष्यों को हासिल करने में नाकाम रहे हैं। एक लेख में यूनिवर्सिटी साइंस लंदन के प्राध्यापक पीटर अरविन ने बताया है कि क्या यह संभव है और क्या हमें ऐसा करना भी चाहिए या नहीं। इस सवाल का स्पष्ट जवाब हां है। 1815 में इंडोनेशिया और फिर 1991 में फिलिपीन्स में हुए शक्तिशाली ज्वालामुखी विस्फोटों के बाद कुछ सालों के लिए वैश्विक तापमान में गिरावट देखने को मिली थी। ऐसे उत्सर्जनों से उच्च वायुमंडल में सूक्ष्मकणों की एक धुंध वाली परत चढ़ जाती है जो कई सालों तक बनी रहती है। और इससे सूर्य की अस्थायी तौर पर पृथ्वी तक कम मात्रा में पहुंचती हैं।पृथ्वी को वैसे तो सूर्य की किरणें गर्म करती ही हैं।, लेकिन उसे गर्म बनाए रखने में ग्रीन हाउस गैसों की भी भूमिका होती है जो ग्रह की सतह से निकलने वाली ऊष्मा को पकड़ लेती हैं और वायुमडंल से बाहर जाने नहीं देती जिससे वायुमंडल गर्म हो जाता है।
इसमें मानव गतिविधियों द्वारा जनित कार्बन उत्सर्जन का योगदान बढ़ रहा है। वहीं दूसरी तरफ ज्वालामुखी से निकलने कणों की परत इस ग्रीनहाउस गैसों के प्रभाव को पृथ्वी पर सूर्य की रोशनी की मात्रा में कमी कर घटा सकती है। शोधों में पाया गया है कि इसके लिए केवल 1 फीसदी कमी से ही ग्रह एक डिग्री ठंडा हो जाएगा। अरविन का कहना है कि ज्वालामुखी के कारण बने इस प्राकृतिक प्रभाव की नकल की जा सकती है, पर क्या हमें ऐसा करना चाहिए। सूर्य की रोशनी में कमी लाना जलवायु परिवर्तन को पूरी तरह से उल्टा नहीं करेगा। सूर्य दिन में, और वह भी गर्मी के मौसम में और कटिबंधीय इलाकों में सबसे ज्यादा गर्मी देता है। लेकिन वहीं ग्रीन हाउस गैसें हर समय पूरी पृथ्वी के सभी हिस्सों को गर्म करती हैं।
अगर सही स्थानों पर महीन कणों को छोड़ा जाए तो शोध ने सुझाया है कि इससे जलवायु जोखिमों को बहुत कम किया जा सकता है। जिस तरह से ग्लोबल वार्मिंग का स्तर खतरनाक होता जा रहा है और दुनिया में कई प्रजातियों के अस्तित्व पर तक खतरा पैदा हो गया है, जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए इस तरह के उपायों को अपनाने एक कारगर विकल्प साबित हो सकता है। ग्लोबल वार्मिंग की वजह से सूखे इलाकों की नमी और कम हो रही है और नम इलाके और नम होते जा रहे हैं जिससे सूखे और बाढ़ की मात्रा बढ़ने लगी है। सूर्य की रोशनी को कम करने से यह प्रभाव कम हो सकेंगे।
सूर्य की रोशनी कम होने से वैश्विक स्तर पर हवाओं और बारिश के स्वरूपों में बदलाव देखने को मिल सकता है। इसका मतलब यह होगा कि पूरी दुनिया में बारिश में थोड़ा बदलाव होगा। कई इलाकों में यह बदलाव बड़ा दिख सकता है, जबकि इसके सटीक प्रभाव पर स्पष्ट जानकारी नहीं निकाली जा सकी है। वहीं इससे दुनिया में बर्फ पिघलने से रोकी जा सकेगी। इस उपाय के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि इससे पृथ्वी ठंडी तो हो जाएगी, लेकिन इससे जलवायु परिवर्तन की समस्या जड़ से खत्म नहीं होगी। इसकी वजह है वायुमंडल में बढ़ती कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा कम नहीं होगी। सीओ2 ग्रह को तो गर्म कर ही रही है, साथ ही वह महासागरों में भी अम्लीकरण ला रही है।