नई दिल्ली। भारत ने 2030 तक अपनी प्राथमिक ऊर्जा जरुरत का 50 प्रतिशत अक्षय ऊर्जा से पूरा करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है। इसके साथ ही देश में लिथियम-आयन बैटरी की मांग वित्त वर्ष 2027 तक 54 गीगावाट घंटे (जीडब्ल्यूएच) और वित्त वर्ष 2030 तक 127 गीगावाट घंटे तक तेजी से बढ़ने की उम्मीद है। वर्तमान में, 15 गीगावाट घंटे की घरेलू लिथियम-आयन बैटरी भंडारण मांग करीब पूरी तरह से लिथियम-आयन सेल और बैटरी के आयात से पूरी होती है। भारत अपनी लिथियम आयन बैटरी की जरूरत आयात से पूरी करता है। रिपोर्ट के अनुसार देश की बैटरी को लेकर यह आयात जरूरत वित्त वर्ष 2027 तक घटकर 20 प्रतिशत रह जाएगी। हालांकि, लिथियम आयन बैटरी स्टोरेज के लिए बड़े पैमाने पर इंटीग्रेटेड कैपेसिटी पैदा करने की वजह से मांग में तेजी जारी रहेगी।
रिपोर्ट में कहा गया हैं कि मांग में वृद्धि मुख्य रूप से ईवी के प्रवेश में वृद्धि और बिजली ग्रिड के डीकार्बोनाइजेशन से प्रेरित है, जिसे केंद्र और राज्य दोनों सरकारों की महत्वाकांक्षी सरकारी लक्ष्यों और नीतियों/ प्रोत्साहनों से समर्थन मिला है। सरकार इलेक्ट्रिक वाहनों को तेजी से अपनाने और विनिर्माण योजना (एफएएमई), बैटरी एनर्जी स्टोरेज सिस्टम के लिए वीडीएफ योजना पर ध्यान दे रही है, जिससे ईवी और बीईएसएस की लागत कम करने में मदद मिली है, जिससे मांग को बढ़ावा मिला है। केंद्र की मोदी सरकार ने 2030 तक वार्षिक बिक्री के प्रतिशत के रूप में 30 प्रतिशत ईवी प्रवेश दर हासिल करने का लक्ष्य रखा है। भारत ने पहले ही पीएलआई योजना के तहत 40 गीगावाट घंटा इंटीग्रेटेड बैटरी कैपेसिटी आवंटित की है, शेष 10 गीगावाट घंटा जल्द ही आवंटित किए जाने की उम्मीद है।
इसके अतिरिक्त, भारत में मौजूदा पारंपरिक बैटरी निर्माता और कुछ अन्य कंपनियों से योजना के बाहर बैटरी क्षमता स्थापित करने की उम्मीद है। भारत में लिथियम-आयन बैटरी स्टोरेज की मांग में वृद्धि होने की उम्मीद है, जो मुख्य रूप से ईवी और रिन्यूएबल एनर्जी स्टोरेज से जुड़ी जरूरतों की ओर माइग्रेशन से जुड़ी है।
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