नई दिल्ली। हरियाणा में कांग्रेस की हार राहुल गांधी के लिए बड़े झटके से कम नहीं है, क्योंकि इसका असर झारखंड विधानसभा चुनाव पर भी पड़ सकता है। हरियाणा में मिली हार से कांग्रेस कार्यकर्ताओं में निराशा है और उनका मनोबल बनाए रखने के लिए पार्टी को झारखंड में जीत की संजीवनी चाहिए। बता दें कि हेमंत सोरेन की सरकार में लव जिहाद और आदिवासी गांव में बांग्लादेशी घुसपैठ तथा हिंदुओं पर हमले बढ़े हैं, इससे झामुमो सरकार जनता के निशाने पर आ गई है। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी ने अभी से इनको मुद्दा बनाते हुए राज्य में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। राज्य में कांग्रेस को जहां पिछड़ी स्थिति में देखा जा रहा है, तो वहीं भाजपा यह भी जानती है कि राज्य में दोबारा सत्ता किसी की नहीं आती है। ऐसे में माना जा रहा है कि कांग्रेस के लिए झारखंड चुनाव का यह रण किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं होने वाला है। झारखंड विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के सामने दोहरी चुनौती है। एक ओर जहां राज्य में पार्टी गठबंधन के साथ चुनावी मैदान में है, वहीं राज्य में गठबंधन का स्वरूप कुछ ऐसा है कि यहां पर झारखंड मुक्ति मोर्चा बड़े भाई की भूमिका में है।
इंडिया गठबंधन में कांग्रेस कमजोर
झारखंड की राजनीति को गहराई से समझने वाले जानकारों की मानें तो इंडिया गठबंधन में कांग्रेस कमजोर पड़ती नजर आ रही है। कांग्रेस पार्टी में गुटबाजी चरम पर है और जमीनी स्तर पर एकजुटता के साथ संगठन की सक्रियता में भी कमी देखने को मिली है। यही कारण है कि राष्ट्रीय पार्टी होने के बाद भी कांग्रेस पार्टी को क्षेत्रीय दलों के पीछे चलना पड़ रहा है। साल 2019 के चुनाव में 31 सीटों पर गठबंधन के तहत चुनाव लड़ने के बाद भी 6 सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी। इससे यह साफ होता है कि जमीनी तौर पर कांग्रेस की पकड़ मजबूत नहीं है।