नईदिल्ली। आज से ठीक पांच साल तक साल में 60 हजार के आसपास ऑनलाइन ठगी के मामले आते थे। अब ये बढ़कर पौने दो लाख से अधिक हो गए है। मुख्य वजह ये है कि यूपीआई जैसे कई पेमेंट एप है जो ठगों के निशाने पर हैं। ऑनलाइन के माध्यम से लेन देने करने वालों में जागरुकता का अभाव है। ये जागरुकता क्यों नहीं बढ़ पा रही है इस पर विचार करने की जरूरत है। जानकारों की माने तो इसके पीछे का मुख्य कारण है प्रचार प्रसार का दायरा सीमित होना। इसके लिए जरूरी है कि सभी छोटे एवं बड़े प्रिंट और इलेक्ट्रानिक माध्यमों का उपयोग कर प्रचार प्रसार किया जाए। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि ऑनलाइन ठगी का सर्वाधिक शिकार शिक्षित वर्ग है। कुल ठगी के शिकार लोगों में 80 से 90 प्रतिशत तक शिक्षित लोग ही होते है। वजह ये है कि बैंकिंग सेवाओं और लेन-देन का ऑनलाइन उपयोग सबसे ज्यादा शिक्षित ही करते हैं। इसका मतलब है कि कहीं न कहीं इन पढ़े लिखे लोगों की नजर से भी जागरुकता वाला सीमित प्रचार प्रसार ओझल हो जाता है। जिसके कारण प्रतिदिन बड़ी संख्या में इंजीनियर, डॉक्टर, सरकारी कर्मचारी, सेवानिवृत्त, वकील नेता एवं यहां तक कि पुलिस भी ठगों के चंगुल फंस जाते है। बता दें कि साक्षरता दर में अन्य राज्यों से आगे दिल्ली और केरल में जनसंख्या के अनुपात में ज्यादा लोग साइबर फ्राड के शिकार हो रहे हैं। पांच वर्ष पहले ऑनलाइन धोखाधड़ी की दर्ज शिकायतों की संख्या जहां 60 हजार से भी कम थी, अब बढ़कर लगभग एक लाख 84 हजार तक पहुंच गई है। सबसे ज्यादा ठगी उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, दिल्ली, बिहार, हरियाणा एवं मध्य प्रदेश के लोगों से होती है। दिल्ली की जनसंख्या अन्य राज्यों की तुलना में कम है। फिर भी ऑनलाइन धोखाधड़ी के मामले में देश में दिल्ली तीसरे पायदान पर खड़ी है। राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन की रिपोर्ट बताती है कि पिछले पांच वर्षों के दौरान देश में ऑनलाइन धोखाधड़ी के मामले में तीन गुना से भी ज्यादा वृद्धि हुई है। इस हिसाब से प्रत्येक महीने औसतन 15 हजार 320 मामले दर्ज हो रहे हैं। ये ऐसे मामले हैं, जिनकी शिकायत साइबर सेल तक पहुंच सकी है। स्पष्ट है कि हजारों की संख्या में वैसे उपभोक्ता भी हैं, जो साइबर सेल तक नहीं पहुंच पाते हैं।
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