यूएन में पाकिस्तान ने फिर अलापा कश्मीर राग, भारत ने लगाई लताड़ा, कहा- ध्यान भटकाने की एक और नाकाम कोशिश
मुझे इस मुद्दे पर बोलने दें
बहस के दौरान अपना बयान समाप्त करने से पहले आर रवींद्र ने कहा, ‘मुझे समय के हित में टिप्पणियों का संक्षेप में जवाब देने दें, जो स्पष्ट रूप से राजनीति से प्रेरित और निराधार थीं, जो मेरे देश के खिलाफ एक प्रतिनिधि द्वारा की गई थीं। मैं स्पष्ट रूप से इन आधारहीन टिप्पणियों को खारिज करता हूं और उनकी निंदा करता हूं।’
उन्होंने कहा, ‘यह और कुछ नहीं बल्कि बच्चों के खिलाफ गंभीर उल्लंघनों से ध्यान हटाने का एक और आदतन प्रयास है, जो उनके अपने देश में बेरोकटोक जारी है। यह इस साल महासचिव की बच्चों और सशस्त्र संघर्ष पर रिपोर्ट में उजागर किया गया है। जहां तक केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख का सवाल है, वे भारत का अभिन्न और अविभाज्य हिस्सा थे, हैं और हमेशा रहेंगे, भले ही यह विशेष प्रतिनिधि या उनका देश क्या मानता या चाहता हो। उनकी यह टिप्पणी संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार परिषद में पाकिस्तान के प्रतिनिधि द्वारा जम्मू-कश्मीर का जिक्र किए जाने के बाद आई है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बहस के दौरान आर रवींद्र ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में वार्षिक बहस से सशस्त्र संघर्ष की स्थितियों में बच्चों के सामने आने वाली चुनौतियों पर ध्यान गया है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को बच्चों के खिलाफ उल्लंघन को रोकने के महत्व को पहचानने में मदद मिली है।
वार्षिक बहस से सामने लाया मुद्दा
भारतीय दूत ने कहा, ‘इस साल बच्चों और सशस्त्र संघर्ष पर सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 1261 को अपनाए जाने के 25 साल पूरे हो रहे हैं। पिछले कुछ सालों में, वार्षिक बहस ने सशस्त्र संघर्ष की स्थितियों में बच्चों के सामने आने वाली चुनौतियों को सामने लाया है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को बच्चों के खिलाफ उल्लंघनों को रोकने और समाप्त करने के महत्व को पहचानने में मदद की है। उन्होंने कहा कि इस दिशा में हम महासचिव के विशेष प्रतिनिधि के कार्यालय के काम की बहुत सराहना करते हैं। हालांकि, सशस्त्र संघर्षों के बदलते परिदृश्य और बच्चों के सामने आने वाली चुनौतियों को देखते हुए बहुत कुछ किया जाना बाकी है। साथ ही इस बात पर जोर दिया कि इस चुनौती पर केवल उस सरकार द्वारा दृढ़ कार्रवाई करके ही काबू पाया जा सकता है, जिसके क्षेत्र में ऐसी संस्थाएं संचालित होती हैं।