सरकारी नौकरी में आरक्षण के लिए राज्य कर सकते हैं अनुसूचित जातियों का उप-वर्गीकरण

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नई दिल्ली। राज्य को सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने के लिए अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों का उप-वर्गीकरण करने का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की संविधान पीठ ने गुरुवार को बहुमत से यह फैसला दिया। संविधान पीठ ने 2004 में ईवी चिन्नैया मामले में दिए गए पांच जजों के उस फैसले को पलट दिया, जिसमें कहा गया था कि एससी/एसटी में उप-वर्गीकरण नहीं किया जा सकता है।

एक जज ने जताई असहमति
सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी के भीतर उप-वर्गीकरण को बरकरार रखा। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने 6-1 के बहुमत से दिया गया फैसला सुना। जस्टिस बेला त्रिवेदी ने बाकी जजों से असहमति जताते हुए आदेश पारित किया। सीजेआई ने कहा कि ‘हमने ईवी चिन्नैया मामले में दिए गए फैसले को खारिज कर दिया है। उप वर्गीकरण अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं करता है, क्योंकि उपवर्गों को सूची से बाहर नहीं रखा गया है।’

फैसला पढ़ते हुए सीजेआई ने कहा कि, ‘वर्गों से अनुसूचित जातियों की पहचान करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले मानदंड से ही पता चलता है कि वर्गों के भीतर विविधता है।’ उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 15, 16 में ऐसा कुछ भी नहीं है जो राज्य को किसी जाति को उप-वर्गीकृत करने से रोकता हो। हालांकि, शीर्ष अदालत ने फैसले में कहा है कि उप वर्गीकरण का आधार राज्यों द्वारा मात्रात्मक और प्रदर्शन योग्य आंकड़ों द्वारा उचित ठहराया जाना चाहिए, वह अपनी मर्जी से काम नहीं कर सकता। न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी ने असहमति जताते हुए अपने फैसले में कहा कि कार्यपालिका या विधायी शक्ति के अभाव में राज्यों के पास जातियों को उप-वर्गीकृत करने और अनुसूचित जातियों के सभी लोगों के लिए आरक्षित लाभों को उप-वर्गीकृत करने की कोई क्षमता नहीं है। राज्यों द्वारा उप-वर्गीकरण अनुच्छेद 341(2) के तहत राष्ट्रपति की अधिसूचना के साथ छेड़छाड़ के समान होगा। अदालत के न्यायमूर्ति बीआर गवई ने अलग दिए फैसले में कहा कि राज्यों को एससी, एसटी में क्रीमी लेयर की पहचान करनी चाहिए और उन्हें आरक्षण के दायरे से बाहर करना चाहिए। वहीं, शीर्ष अदालत ने कहा कि कोटा के लिए एससी, एसटी में उप-वर्गीकरण का आधार राज्यों द्वारा मानकों एवं आंकड़ों के आधार पर उचित ठहराया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने 6-1 के बहुमत से फैसला सुनाया कि राज्यों के पास आरक्षण के लिए अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति में उप-वर्गीकरण करने की शक्तियां हैं।

 

आठ फरवरी को रखा था फैसला सुरक्षित
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी, जस्टिस पंकज मित्तल, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने इस मामले पर तीन दिनों तक सुनवाई करने के बाद इस साल आठ फरवरी को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस मामले को 2020 में पंजाब राज्य बनाम दविंदर सिंह मामले में पांच जजों वाली पीठ ने सात जजों वाली पीठ को सौंप दिया था। पांच जजों वाली पीठ ने पाया कि ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य, (2005) 1 एससीसी 394 में समन्वय पीठ के फैसले पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है, जिसमें कहा गया कि उप-वर्गीकरण अनुमेय नहीं है। बता दें कि वरिष्ठ अधिवक्ताओं की ओर से प्रतिनिधित्व किए गए राज्यों ने ईवी चिन्नैया मामले में फैसले की समीक्षा की मांग की है। साल 2004 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्यों के पास आरक्षण देने के लिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की उप-वर्गीकरण करने का अधिकार नहीं है।

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