सुप्रीम कोर्ट का बुलडोजर एक्शन पर सख्त रुख, न्यायिक प्रक्रिया के बिना संपत्तियों पर कार्रवाई गलत

दिए स्पष्ट दिशानिर्देश और तय की सभी की जिम्मेदारी

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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्शन मामले को लेकर आज अपना फैसला सुनाया। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की डबल बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा कि सरकारी शक्तियों का दुरुपयोग अराजकता को जन्म दे सकता है और इसे कानूनी रूप से मंजूरी नहीं दी जा सकती। बेंच ने कहा कि कोई भी व्यक्ति अपने घर को सुरक्षित रखने का सपना देखता है, और केवल आरोप या अपराधी होने के आधार पर किसी के घर को गिरा देना उचित नहीं है, जब तक कि सभी कानूनी प्रक्रियाओं का पालन न किया गया हो। फैसले के दौरान जस्टिस गवई ने टिप्पणी की, प्रत्येक व्यक्ति का सपना होता है कि उसके पास एक सुरक्षित आशियाना हो। सवाल यह है कि क्या किसी पर महज आरोप लगने के चलते उसकी संपत्ति को बिना कानूनी प्रक्रिया पूरी किए नष्ट किया जा सकता है? उन्होंने आगे कहा कि भारत में न्यायिक प्रक्रिया के तहत ही किसी संपत्ति पर कार्रवाई होनी चाहिए, ताकि किसी भी समुदाय या व्यक्ति के अधिकारों का हनन न हो। सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्शन के खिलाफ दायर याचिका पर फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया कि किसी अपराध के आरोपी या दोषी का घर मनमाने ढंग से ध्वस्त नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने नागरिक अधिकारों और संविधान के अनुच्छेद 142 का पालन करते हुए प्रशासनिक शक्तियों के दुरुपयोग को रोकने के लिए महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इनके मुताबिक आरोपी या दोषी का घर बिना न्यायसंगत प्रक्रिया के नहीं गिराया जा सकता, क्योंकि घर केवल एक संपत्ति नहीं है बल्कि सुरक्षा और आश्रय का प्रतीक है। बुलडोजर एक्शन सामूहिक दंड जैसा है, जो संविधान में स्वीकार्य नहीं है। राज्य, आरोपी के खिलाफ मनमानी कार्रवाई नहीं कर सकता; निष्पक्ष सुनवाई के बिना किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। निष्पक्षता सुनिश्चित करते हुए, कानूनी व्यवस्था में सभी नागरिकों के अधिकारों की रक्षा की जानी चाहिए। कार्यपालिका को मनमाने तरीके से नागरिकों की संपत्ति नष्ट करने का अधिकार नहीं है। यह संविधान के उल्लंघन जैसा होगा। इसके साथ ही अदालत ने बुलडोजर एक्शन की जवाबदेही तय करते हुए दिशानिर्देश दिए कि अधिकारियों को शक्ति के दुरुपयोग पर उत्तरदायी ठहराया जाएगा और बख्शा नहीं जाएगा। ध्वस्तीकरण के लिए नगरपालिका के कानूनों का पालन किया जाना चाहिए। अनधिकृत निर्माण को भी बातचीत से हल किया जा सकता है। ध्वस्तीकरण का कारण और सुनवाई की तारीख स्पष्ट रूप से नोटिस में दी जानी चाहिए। तीन महीने में एक डिजिटल पोर्टल बनाया जाना चाहिए, जिसमें नोटिस की जानकारी और सार्वजनिक सूचना प्रदर्शित की जाएगी। संपत्ति मालिक को सुनवाई की तारीख दी जानी चाहिए, ताकि वह अपनी बात रख सके। ध्वस्तीकरण का आदेश तभी दिया जाए जब अनधिकृत संरचना सार्वजनिक उपयोग के मार्ग पर हो। केवल वे संरचनाएँ ध्वस्त की जाएंगी जो अनाधिकृत पाई जाएंगी और जिनके लिए समाधान संभव नहीं होगा। यदि किसी अधिकारी ने अवैध ध्वस्तीकरण किया है, तो उसे जुर्माने के साथ-साथ कानूनी कार्रवाई का सामना करना होगा। इसी के साथ ही बुलडोजर एक्शन से पहले स्थल का निरीक्षण किया जाएगा और पुलिस व अधिकारियों की मौजूदगी में वीडियो रिकॉर्डिंग की जाएगी। यह रिपोर्ट पोर्टल पर सार्वजनिक की जाएगी।

दिशा-निर्देशों का पालन न करने पर संबंधित अधिकारियों से संपत्ति की बहाली सुनिश्चित कराई जाएगी। लोगों को नोटिस मिलने के बाद वैकल्पिक आश्रय की व्यवस्था दी जाएगी ताकि रातों-रात किसी को बाहर न निकाला जाए। महिलाओं और बच्चों को अनधिकृत संरचना हटाने के दौरान उचित संरक्षण दिया जाए। सार्वजनिक उपयोग की संरचनाओं को ध्वस्त करने से पहले, एक प्रमुख स्थान पर सूचना प्रदर्शित की जानी चाहिए। हर ध्वस्तीकरण के पहले 15 दिन का नोटिस जारी करना अनिवार्य होगा। ध्वस्तीकरण नोटिस जारी होते ही कलेक्टर/जिला मजिस्ट्रेट को ऑटोमेटेड ईमेल भेजा जाएगा। सार्वजनिक सड़क, रेलवे ट्रैक, या जल निकाय पर स्थित अवैध निर्माण ही गिराए जाएंगे, अन्यथा नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नागरिकों को ध्वस्तीकरण की प्रक्रिया से भयमुक्त रखने के लिए इन दिशा-निर्देशों का पालन अनिवार्य होगा। मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पिछली सुनवाई में दलील दी थी कि बुलडोजर कार्रवाई के मामले में एक विशेष समुदाय को निशाना बनाने का आरोप लगाया जा रहा है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और सभी के लिए समान गाइडलाइंस होंगी।

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