आज रूप चौदस का पर्व है। इसे नरक चतुर्दशी और छोटी दीपावली भी कहा जाता हैं। इस पर्व से जुड़ी मान्यताएं हैं। कल यानि 12 नवंबर को लक्ष्मी पूजा की जाएगी, इससे पहले रूप चौदस पर भक्त अपना रूप निखारने के लिए उबटन लगाते हैं, तेल मालिश करते हैं और पानी में जड़ी बूटियां मिलाकर स्नान करते हैं। माना जाता है कि देवी लक्ष्मी उन्हीं लोगों पर कृपा करती हैं, जो साफ-सफाई से रहते हैं, जिनके घर और विचारों में पवित्रता रहती है।
नरक चतुर्दशी से जुडी पहली कहानी
नरकासुर नाम के राक्षस ने 16 हजार 100 महिलाओं को बंदी बना रखा था। जब ये बात भगवान कृष्ण को मालूम हुई तो उन्होंने कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर नरकासुर का वध किया था और सभी 16 हजार 100 महिलाओं को कैद से मुक्ति दिलाई। समाज में इन सभी महिलाओं को मान-सम्मान मिल सके, इसलिए श्रीकृष्ण ने इन सभी महिलाओं से विवाह किया था। इनके साथ ही श्रीकृष्ण की 8 मुख्य पटरानियां भी थीं। इस मान्यता की वजह से ही श्रीकृष्ण की 16, 108 रानियां मानी जाती हैं। नरकासुर वध की तिथि होने से ही इसे नरक चतुर्दशी कहा जाता है।
पर्व से जुडी दूसरी कहानी
दूसरी कहानी यमराज और यमदूतों से जुड़ी पौराणिक कथा है। एक दिन यमराज ने यमदूतों से पूछा था कि क्या तुम्हें कभी भी किसी प्राणी के प्राण हरण करते समय दुख हुआ है। यमदूतों ने कहा कि एक बार हमें दुख हुआ था। हेमराज नाम का एक राजा था। जब उसके यहां एक पुत्र का जन्म हुआ तो ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की थी कि ये बच्चा अल्पायु है। विवाह के बाद इसकी मृत्यु हो जाएगी। ये बात सुनकर राजा ने पुत्र को अपने मित्र राजा हंस के यहां भेज दिया। राजा हंस ने बच्चे का पालन सबसे अलग रखकर किया। जब राजकुमार बड़ा हुआ तो एक दिन एक राजकुमारी उसे दिखाई दी और दोनों ने गंधर्व विवाह कर लिया।
विवाह के 4 दिन बाद राजकुमार की मृत्यु हो गई । पति की मृत्यु से दुखी होकर राजकुमारी, राजा हेमराज और उनकी रानी रोने लगे और विधाता को कोसने लगे। जब हम उस राजकुमार के प्राण हरण करने पहुंचे तो इन सभी का विलाप देखकर हमें बहुत दुख हुआ था। ये बात बताने के बाद यमदूतों ने यमराज से पूछा कि क्या कोई ऐसा उपाय है, जिससे किसी प्राणी की अकाल यानी असमय मृत्यु न हो। यमराज ने यमदूतों से कहा कि जो लोग कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी की रात दक्षिण दिशा में मेरा या मेरे यमदूतों का ध्यान करते हुए दीपक जलाते हैं, उन्हें अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। इसी कथा की वजह से नरक चतुर्दशी की रात यमराज के लिए दीपदान किया जाता है।