मंडल और कमंडल की लड़ाई का रण भूमि बनेगा उत्तर प्रदेश

बीपी सिंह के बारिस बने अखिलेश यादव -तमिलनाडु का जवाब यूपी में देंगे स्टालिन

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नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के पहले भारतीय राजनीति में भारी उथल-पुथल मच गई है। बांटो और राज करो की जिस नीति पर चलते हुए भारतीय जनता पार्टी ने धार्मिक ध्रुवीकरण का जो खेल खेला था। इस नीति पर चलते हुए अब गैर भाजपाई दलों ने हिंदुओं के बीच सामाजिक ध्रुवीकरण करके कमंडल के सामने नई चुनौती खड़ी कर दी है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने मंडल के मसीहा विश्वनाथ प्रताप सिंह की मूर्ति चेन्नई में लगवाई है। उन्होंने मूर्ति अनावरण के इस कार्यक्रम में, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को बुलाया। बीपी सिंह के परिवार से उनकी पत्नी और उनके बच्चे भी अनावरण में शामिल हुए। सामाजिक समरसता के नए समीकरण को लेकर हिंदुओं के बीच मंडल कमीशन की अखंड जगाने का काम स्टालिन ने उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को सौंप दिया है। उत्तर प्रदेश से भारत का प्रधानमंत्री तय होता है। सनातन को लेकर भारतीय जनता पार्टी ने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन के बेटे और स्टालिन को निशाने पर लिया था। अब सनातन और ब्राह्मणवाद के विरोध में जाति समीकरण को लेकर हिन्दुत्व के शंखनाद की तैयारी उत्तर प्रदेश से की जा रही है। केंद्र सरकार ने तमिलनाडु सरकार के खिलाफ लगातार ईड़ी की कार्रवाई जारी रखी थी।

तमिलनाडु के राज्यपाल ने सरकार को असफल बनाने के लिए कई बिल रोक कर रखे थे। हैरान परेशान स्टालिन ने भी अब केंद्र की मोदी सरकार को उन्ही की स्टाइल में जवाब दे दिया है। तमिलनाडु सरकार ने करोड़ों रुपए के विज्ञापन अखिलेश यादव और बीपी सिंह की मूर्ति को लेकर सारे देश के प्रमुख अखबारों में जारी किए हैं। खुलकर वह अब केंद्र सरकार के विरोध में आकर खड़े हो गए हैं। रही सही कसर कांग्रेस पूरी कर रही है कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी उत्तर प्रदेश से लोकसभा का चुनाव लड़ने जा रहे हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी लगातार जाति जनगणना की मांग करते हुए, जिन राज्यों में कांग्रेस की सरकार है। वहां जाति जनगणना शुरू करने और जिसकी जितनी आबादी उसको उतना हिस्सा कहकर सामाजिक समीकरण का नया दांव चल दिया है।

जिसके कारण हिंदू वोटो में खंड-खंड में बंटवारे की स्थिति बन गई है। भारतीय जनता पार्टी के की कमंडल की राजनीति के लिए एकाएक चुनौती खड़ी हो गई है। इंडिया गठबंधन को लेकर संशय उत्तर प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस और राहुल गांधी प्रियंका गांधी का कद बढ़ रहा था। दलित और मुस्लिम कांग्रेस की ओर आकर्षित हो रहे थे। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के दौरान जिस तरह से कांग्रेस ने सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की अनदेखी की। उसके बाद वह भी यूपी और देश में अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए तीसरे मोर्चे की तर्ज पर एक नई राजनीति की शुरुआत कर दी है। इसका अंजाम किस तरह का होगा, अभी कहना मुश्किल है।

इतना तय है, कि 2024 के लोकसभा चुनाव का महासंग्राम उत्तर प्रदेश की रणभूमि में होना तय है। तमिलनाडु से लड़ना चाहते थे मोदी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तमिलनाडु की किसी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे। तमिलनाडु में ब्राह्मणवाद और हिंदी का विरोध चरम सीमा पर है। पेरियार वहां के सर्वमान्य नेता हैं। अन्ना डीएमके और डीएमके दोनों ही पेरियार के बताए हुए मार्ग पर राजनीति कर रहे हैं। सनातन को लेकर जो लड़ाई भारतीय जनता पार्टी ने शुरू की थी। उसका जवाब अब सभी विपक्षी दल मिलकर सामाजिक समरसता के रूप में देने जा रहे हैं। दलित, आदिवासी, पिछड़े वर्ग की 80 फ़ीसदी आबादी धार्मिक एवं सामाजिक आधार पर बटी हुई है। ब्राह्मणवाद को शोषण का प्रतीक माना जाता है। ब्राह्मणवाद की पहचान ही सनातन के रूप में है। जिसके कारण यह कहा जा सकता है, कि इस बार का लोकसभा चुनाव धर्म युद्ध की तरह होगा। इस धर्म युद्ध की शुरुआत कमंडल से शुरू हुई थी। अब मंडल आकर इस लड़ाई को अंजाम तक ले जाएगा। दक्षिण भारत में इरोउ बेंकट रामास्वामी दक्षिण के राज्यों में पेरियार के नाम लोकप्रिय हैं। उन्होंने 20वीं सदी में दलित, शोषित एवं गरीबों के लिए ब्राम्हणबाद से लड़ाई लड़ी थी। गैर बराबरी वाले हिन्दुत्व का विरोध किया था। दक्षिण में महात्मा गांधी की तरह लोकप्रिय हैं। उत्तर भारत से पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मंडल कमीशन के माध्यम से उत्तर भारत में गैर बराबरी वाले हिन्दुत्व के बीच में समानता लाने के लड़ाई शुरु की थी। इसे उत्तर भारत एवं दक्षिण भारत को एक मंच में लाने का प्रयास पहली बार हो रहा है।

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